तलाक़-ऐ-हसन को ट्रिपल तलाक़ नहीं माना जा सकता, महिलाओं के पास भी है विकल्प : सुप्रीम कोर्ट
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- August 19, 2022
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सुप्रीम कोर्ट मे बुधवार को एक मुस्लिम महिला पत्रकार द्वारा दाखिल की गयी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय कौल की पीठ ने कहा कि एक मुस्लिम महिला के पास “ख़ुला” के माध्यम से तलाक़ का विकल्प होता है यदि वह महर या कुछ और जो उसने पति से प्राप्त किया हो उसे वापस कर देती है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह मांग की थी कि तलाक़-ऐ-हसन और एकतरफा न्यायेतर तलाक़ के सभी रूपों को शून्य और असंवैधानिक करार दिया जाये इस दावे के साथ कि यह मनमाना, तर्कहीन और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
तलाक़ हसन और तलाक़ बिदअत (तीन तलाक़)
इस्लाम में यदि पति अपनी पत्नी को तीन माह तक एक महीने के अंतराल पर तीन तलाक़ देता है तो उसे तलाक़-ऐ- हसन कहते हैं इसके विपरीत यदि कोई अपनी पत्नी को एक ही बार में तीन तलाक़ देता है तो उसे तलाक़ बिदअत या तीन तलाक़ कहते हैं जिसे असंवैधानिक करार दिया गया है।
मौखिक टिप्पणी करते हुए जस्टिस कौल ने कहा कि ” प्रथम दृष्टया तलाक़ हसन इतना अनुचित नहीं है, महिलाओं के पास भी “खुला ” का अधिकार है। मै नहीं चाहता कि यह किसी दूसरे कारण का एजेंडा बने”।
याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थिति वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद से उच्चतम न्यायालय ने कहा कि असफल विवाह के आरोप को देखते हुए क्या याचिकाकर्ता महर से अधिक भुगतान की गयी राशि पर तलाक़ की प्रक्रिया द्वारा समझौते की इच्छुक होंगी।
मामले में अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी।